
ॐ परमात्मा प्रथम तो यह समझ में नहीं आता की ऐसा क्या लिखा जाए ? जो सत्य को पूर्ण रूप से उजागर कर दे, क्योंकि गुरु महाराज कहतें हैं कि सत्य जैसा है, वैसा दिखाई नहीं देता तथा जो दिखाई देता हैं, वह सत्य नहीं तो क्या हैं सत्य ? हम इस विषय पर विचार नहीं करगें क्योंकि सत्य जो है सो है, इसे न तो घटाया जा सकता है और न ही बढ़ाया जा सकता है अर्थात यह दोनों ही कार्य सत्य में नहीं, तो हम उसके बारें में क्या लिखे ? अब हम उस विषय को लेते हैं जिसमें पहले कही हुई दोनों बाते सम्भव हैं अर्थात जिसमें घट-बढ़ संभव हैं, उसमें बदलाव किया जा सकता है और जिसमें बदलाव किया जा सकता है, उसे अनुकूल या प्रतिकूल भी बनाया जा सकता हैं | अब ख्याल आता है कि कौन- कौनसी ...