
हम केवल शब्दों की बात करतें हुए, यह समझनें की कोशिश करतें हैं की यह बात किस आधार पर बनती हैं- फल कर्मो के अधीन हैं और कर्म ही ईश्वर है, जिसे फल के रूप में जीव प्राप्त करता हैं, तो इसके लिए हमें पहले अपने मतभेद को अलग रखकर, केवल शब्दों के भेद को समझना हैं और शब्दों के अर्थ को ग्रहण करना हैं, उसके बाद इस विषय में, हमारा भी एक विचार अपने आप बन जाता हैं, जिसकी अनुभूति सहज होती है, पहले एक शब्द लेतें हैं :- फल हमारें लिए फल की उत्त्पति व्यवहारिक रूप से बीज से होती है, अर्थात जब बीज का नाम हम सुनतें हैं, तो हमारी बुद्धि धरती शब्द पर भी जाकर यह विचार करनें लगती हैं की बीज शब्द आया है, तो जरुर भूमि या धरती अथवा पृथ्वी का संबंध बीज से होगा, हमें ऐसा इसलिए लगता, क्योंकि यह हमारा पहले का अनुभव है, जो शब्द के ज्ञान से प्राप्त होता है, हम इस अनुभव को कुछ इस तरह व्यक्त करतें हैं की बीज तो धरती में बोया जाता हैं, फिर उस बीज से हम उसी जाति और उसी रूप के अनेक बीज प्राप्त कर लेतें हैं, यह उपाय या तरीका हम ...