||ॐ श्री जय हंस निर्वाण निरंजन नित्य|| 


            सकल घट एक अविनाशी,
            सकल जग माहिं प्रकाशी | 
            


मंदिर की सीढ़ियों पर लोग पैर रखकर जाते हैं, मंदिर 

में रखी मूर्ति के आगे शीश झुकाते हैं |

जिस पर पैर रखा वो पत्थर था, जिसको शीश नवाया 

वो भी पत्थर ही था, फिर ये अंतर क्यू?

कहेनें वाले कहते हैं कि जिसने.. जितना.. दर्द सहा 

उसको.. उतना.. मिला |

प्रश्न :-

कका क्या कहूं ? करतार की,
जिन घर ऐसी भूल |
एक कंटक पौधा गुलाब का,
तिनका ऐसा फूल |

 उत्तर :-
शीश कटे पेम चढ़े,
अंग लिपटाय धूल |
इतना कष्ट पहले सहा,
फिर पाया ऐसा फूल |

     


 घर में जीवन या जीवन में घर   :-


पहली मंजिल– मन
घर- अपना ठिकाना
दरवाज़े– प्यार के

उम्मीदें– खिडकियों में
नोंक-झोंक की– चहल-पहल
सजावट– रिसाने और मनुहार की
नींव– गहराई की
सीमेंट– समझदारी की
जाल– परवाह का बुना
रंगोली- खिलखिलाती किलकारियाँ
बाजे– तालियों के
कभी सुरीले कभी तीखे से राग– प्यारी आवाज के
वन्दनवार– बड़ों के मान, छोटे की मुस्कुराहटों का
फव्वारें– दुलार-प्यार के
घरौंदा है नाम इस घर का |


शब्दार्थ -
अमायमाया रहित |
अमानापूरा-पूरा भरना |
अमान- जिसका मान या प्रतिष्ठा न हो |
अमात्य- मंत्री |
अमानत- अपनी वस्तु किसी के पास कुछ समय के लिए रखना |
अमा- अमावस्या,चन्द्रमा की सोलहवीं कला |


यह हो क्या रहा हैं? 

मनचाहा न मिले तो हमारे लिए इतना ही सही हैं|
मनचाहा मिले तो हमारे लिए इतना ही सही नहीं हैं|







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