ॐ श्री जय हंस निर्वाण निरंजन नित्य 

आज हम बात करेगें उन वीडियों की जो हम अक्सर मोबाइल या किसी अन्य साधन के जरिये देखते हैं, हम क्या देख रहें हैं और क्यों देख रहें? इसकी जानकारी हमें होगी,

तो हम अपनी विचारधारा की दिशा को समझ जायेगें की हमारें विचार किसी और प्रवाहित हो रहें हैं?  हमें  क्या पसंद हैं? हम किससे और कितने प्रभावित होते हैं ? हमारें विचार हमारें अपने हैं या  दूसरें से  प्रेरित हैं ? इन सब प्रश्नों के उत्तर हमें मिल जाये,
तो हम अपनी विचार शक्ति की क्षमता परख सकतें हैं, 

सामान्य ज्ञान और विशेष ज्ञान यह दो प्रकार का ज्ञान यहाँ लिखा हैं फिर भी ज्ञान तो आखिर ज्ञान है और उसमें सिखने को मिलता है कुछ न कुछ जानने को  मिलता है,

ज्ञान सामान्य हैं तो क्या? 
ज्ञान विशेष है तो क्या?

जिसके पास जो है वह तो उसी से काम चलाता है, फिर क्यों  हमें ऐसा लगता हैं कि 
यह सही नहीं या वह सही नहीं ? 

हम यह क्यों नहीं समझ पातें की जो हमारें सामने है- 
वह क्यों है? और कैसे है ?
किसके लिए है?
क्या हैं ? और  कहाँ है ?
कब तक है? और कब तक नहीं है ?
इस प्रकार यदि विचार प्रवाहित होने लगें,
तो हम किसी दूसरे पर आक्षेप करने से पहले वस्तु स्थिति को सझने के लिए बुद्धि का प्रयोग करतें हैं और विवेक पूर्ण मत को सहृदयता के साथ स्वीकार करतें हुए, निज अनुभव से प्राप्त आनन्द की अनुभूति करें |

"मेरा अपना कोई मत नहीं " यह स्वयं के लिए है पर जब हम किसी अन्य के विषय में चर्चा करतें हैं तो उसमें मत अपने आप सम्लित हो जाता हैं और जहाँ मत की बात आती हैं, वहां हार जीत का ख्याल भी सताने लगता है इसमें कोई संशय नहीं, फिर भी यह आवश्यक नहीं की जिसका मत हो वही मनुष्य है और जिसका कोई मत नहीं वह मनुष्य नहीं है अर्थात मत का अर्थ मनुष्य नहीं है, मत का  अर्थ एक विचार है, 

जो बह जाए तो दूसरों के लये है और 
आया ही नहीं तो बहे कहाँ से ? यह स्थिति स्वयं में है,

इसका यह अर्थ नहीं की हृदय हो और हलचल भी नहीं हो, 
यह स्थिति तो मृत है अर्थात जीवन है, तो विचार भी है |

विचार क्यों है ? 
किसके लिए है?
किसका है? 

इन प्रश्नों से भी मानव ह्रदय में हलचल स्वभाविक रूप से बनी रहें तो  जीवन में सब कुछ स्पष्ट हो जाता है,
इस लेख का अभिप्राय यही है कि जो कुछ हम देखतें और सुनतें हैं उसमें जो आकड़ें दिए जातें हैं  उनका सकलन अन्य के द्वारा किया जाता हैं और जिस माध्यम से हम सूचनाओं को प्राप्त करतें हैं, वे भी अन्य के द्वारा प्रदत हैं, इसलिए हमें कोई अधिकार नहीं बनता की हम किसी अन्य व्यक्ति विशेष या विचार विशेष को लेकर किसी पर आक्षेप करें और यदि कोई ऐसा करता हैं तो उस व्यक्ति विशेष या विचार विशेष को  उसके हाल पर छोड़कर,
केवल उन तथ्यों पर विचार करें,
जिन तथ्यों का सकलन हमारें लिए सहज और स्वभाविक हैं |  



       



    

     

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट